Wednesday, May 25, 2011

एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की   बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई   है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में   सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच   ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये    
 
 

Friday, May 13, 2011

Poet vs Doctor

Poet: Jhuki jhuki Palkein
Dr: Ptosis

...Poet: Gulabi Aankhein
Dr: Conjunctivitis

Poet: Tirchi Nazar
Dr: Squint

Poet: Khamosh se lab
Dr: Aphasia

Poet: Gulabi Gaal
Dr: Plethora

Poet: Kapkapate hath
Dr: Parkinson's

Poet: Chand sa chehra
Dr: Cushing's Syndrome

Poet: Kaala Til
Dr: Melanoma

Poet: Har Taraf Ussi Ka Chehra
Dr: Hallucination

MORAL: Beauty is "Full of Diseases"

:D :D #jehher

Friday, April 22, 2011

Sikhs-Are we following our Guru?

Last week afternoon I stepped in a local bar to have few shots of Vodka.It was a calm and peaceful atmosphere.I sat on the sofa and ordered ice and soda.Adjacent to me another Sardarji was sitting.To my surprise he put a cigrette in his mouth,lit it with lighter and started puffing.It was a big shock to me, as we sardars are far far away from tobacco and its related products.
    Its a common sight to see Sikh people drinking in Bars,Pubs and their respective homes.But the real question is ‘Is alcohol also not prohibted in our religion’?? Are we really following the guidelines issued by our beloved Guru Gobind Singh ji.Guruji has made Sikhs as a brave martial community, always ready to sacrify their lives for others.Go to the history and see the sacrifices of Sikhs ‘Bhai Taru singh ji,Subeg Singh,Banda Bahadur and many many more.The list is endless.
 But the modern day Sikhs(majority ones) are themselves drowned in the well of alcohol,drugs.They are not able to support themselves,What will they do for others.Majority of sikhs nowdays are cutting their hairs,Shaving their beards,losing the precious identity given by the Guru.The big question is ‘Is it for this day,several Sikhs have sacrified their lives’?
   One of my old friend who hails from Nanded,Maharashtra visited me.He was very much shocked to see the condition of Sikhs here.He was surprised to see fathers in full beard and turban,while their children totally cleanshaven.He said ‘When the question of cigrette comes, every sardar says that it is prohibted in our religion,but I am searching for that Granth which says a sikh is allowed to have alcohlol.’
    The question arises ‘Have we really forgot(including myself)  What our Gurus have taught us?Are we setting that example which our forefathers have set in their lives?  Few days back I visited ISKCON temple at Vrindaban.The security officer while checking me said that there is no need to check a sardar,they are far far away from tobacco,cigrette.Belive me, I was feeling proud of being a Sikh.
 Its a high time for Sikhs to look upon themselves,Where are we going??Time to rethink about the Principles of our Guru. as Guruji has said,
       “Rehat Pyari Moh ko,   Sikh Pyara naa Hein,
          Rehni Rahey Soi Sikh Mera, Ohi sahib main Uska Chera”
    Guru Fateh,
     Ishtdeep Singh